महर्षि कण्व
माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।
103 सूक्तवाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु ‘प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति’ के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मण्डल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण सम्बन्धी उपयोगी मन्त्र हैं।
सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किलो मीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।
प्राचीन भारत में ‘कण्व’ नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध ‘महर्षि कण्व’ थे जिन्होंने मेनका के गर्भ से उत्पन्न विश्वामित्र की कन्या शकुंतला को पाला था। शकुंतला के पुत्र भरत का जातकर्म इन्होंने ही संपादित किया था।
दुसरे कण्व ऋषि कंडु के पिता थे जो अयोध्या के पूर्व स्थित अपने आश्रम में रहते थे। रामायण के अनुसार वे राम के लंका विजय करके अयोध्या लौटने पर वहाँ आए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
तीसरे कण्व पुरुवंशी राज प्रतिरथ के पुत्र थे जिनसे काण्वायन गोत्रीय ब्रह्मणों की उत्पत्ति बतलाई जाती है । इनके पुत्र मेधातिथि हुए और कन्या इंलिनी। (यह जानकारी कण्व गोत्रीय ब्राह्मणों के लिए लाभकारी हो सकती है)
चौथे कण्व ऐतिहासिक काल में मगध के शुंगवंशीय राज देवमूर्ति के मंत्री थे जिनके पुत्र वसुदेव हुए। इन्होंने राजा की हत्या करके सिंहासन छीन लिया और इनके वंशज काण्वायन नाम से डेढ़ सौ वर्ष तक राज करते रहे।
पाँचवें कण्व पुरुवंशीय राज अजामील के पुत्र थे
छठे महर्षि कश्यप के पुत्र।
सातवें महर्षि घारे के पुत्र थे जिन्होंने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों की रचना की है।
इनके अतिरिक्त छह सात और कण्व हुए हैं जो इतने प्रसिद्ध नहीं हैं ।
स्रोत:महाभारत,ऋग्वेद,रामायण,विष्णुपुराण








